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बात के साथ ही मौजूद है


बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक 

है ख़िलाफ़ अपने सदा आप के चाल एक न एक 


हम भी इस वास्ते बैठे हैं कि हो रहता है 

तुझ सही सर्व के साये में निहाल एक न एक 


यार है पास पर अब फ़र्त-ए-तरद्दुद के सबब 

आ ही रहता है मिरे दिल को मलाल एक न एक 


मैं तो हर-चंद बचाता हूँ व-लेकिन हैहात 

खुब ही जाता है इन आँखों में जमाल एक न एक 


तुझे कुछ हुस्न-परस्ती से नहीं काम वले 

हो ही रहता है मिरे जी का ज़वाल एक न एक 


क्या करूँ गरचे भुलाता हूँ बहुत मैं लेकिन 

आ ही रहता है तिरा मुझ को ख़याल एक न एक

 

मज्लिस-ए-वज्द में पढ़ अपनी ग़ज़ल तू 'इंशा' 

कर ही बैठेगा अभी सुनते ही हाल एक न एक

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